आजकल बिहार के चम्पारण में चम्पारण सत्यग्याह का शताब्दी बर्ष मनाने की तैयारिया चल रही है क्युकी आज 10 अप्रैल 1917 को महांत्मा गाँधी ने चम्पारण सत्यग्याह की शुरुआत की थी , तो हमने सोचा क्यों ना इसपर एक ब्लॉग लिखा जाये और सबको बताय जाये इस बारे में| तो चलिए हम आपको इस ब्लॉग में चम्पारण आंदोलन के बारे में विस्तार से बताते है |
चम्पारण एक ऐतिहासिक जगह है जो की आज बिहार राज्य में पड़ता है जो की आज पूरबी और पच्मि चम्पारण जिले में विभाजित है| राजा जनक में ज़माने में यह मिथिला में पड़ता था|
जब महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रिका से लौटकर भारत आये थे तब उन्होंने अपना पहला आंदोलन यही से शुरुवात किया था| यह आंदोलन गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917-18 शुरुआत हुआ था| चूकि यह चम्पारण जिले से शुरु हुआ इसलिए इसे चम्पारण आंदोलन के नाम से जाना गया और इस आंदोलन में उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई।
जब महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रिका से लौटकर भारत आये तब यही के एक किसान राजकुमार शुक्ल उन्से मिलने पहुंचे और उन्हें यहाँ की सच्चाई बताई की कैसे यहाँ चंपारण में अंग्रेजों ने नील बनाने के अनेकों कारखाने खोल रखे है। जिन्हे निहले कहा जाता था। जो की यहाँ की अधिकांश ज़मीनों को हथियाकर उस पर अपनी कोठियां बनवा रखी है और ये अंग्रेज यहाँ के किसानो को नील की खेती के लिए मजबूर करते है। उनका कहना है कि एक बीघे ज़मीन पे तीन कठ्ठे नील की खेती जरूर करें और इस प्रकार जो भी पैदावार होती थी वो उन्हें कौड़ियों के दाम खरीदते है। जिन्हे तीन कठिया प्रथा कहा जाता था। जिसके कारण यहाँ के किसानों का भंयकर शोषण हो रहा है ।
जिसके कारण किसानो में अंग्रेजों के खिलाफ भयंकड असंतोष फैल चुका है। ये अंग्रेज यहाँ की जनता का और व् बहुत तरह से शोषण किया करते है, और जिससे तंग आकर वो उनके पास आये क्युकी वो उनके दक्षिण अफ्रिका आंदोलन के बारे में जानते है| राजकुमार शुक्ल के अथक प्रयअसो से ही राष्ट्रीय कांग्रेस के 1916 के अधिवेशन में एक प्रस्ताव प्रस्ताव पारित कर चंपारण के किसानो के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई। 10 अप्रैल 1917 यानि आज के दिन गाँधीजी राजकुमार शुक्ल के साथ पटना पहुँचे और उसी रात् वही se वो मुजफ्फरपुर के लिए निकल गये। वो अपने पटना प्रवास के दौरान वहाँ के प्रख्यात वकील राजेन्द्र प्रसाद से मिलना चाहते थे परन्तु वो उस समय वहा मौजूद नही थे। तब गाँधी जी मौलाना मजरुल्लहक जो की उनके मित्र भी थे उनसे मिलकर नील की खेती से सम्बंधित समस्या की जानकारी ली और इससे निजात हेतु विचार विमर्श किया ।
फिर गाँधी जी 15 अप्रेल को मोतिहारी पहुँचे, वहाँ से जब गाँधीजी 16 अप्रैल की सुबह चंपारण के लिये निकल रहे थे, तभी मोतीहारी के एस डी ओ के सामने उपस्थित होने का सरकारी फरमान उन्हे मिला। जिसमे ये भी लिखा हुआ था कि वे इस क्षेत्र को छोङकर तुरंत वापस चले जायें। गाँधी जी ने इसे नहीं मन और अपनी यात्रा को जारी रखा। आदेश नहीं मानने की वजह से उनपर मुकदमा चलाया गया। चंपारण पहुँच कर गाँधी जी ने वहाँ के डीएम को लिखकर सूचना दी की,
" वे तब तक चंपारण नही छोङेगें, जबतक नील की खेती से जुङी समस्याओं की जाँच वो पूरी नही कर लेते।"
गाँधी जी से मिलने की लिए पहले से ही सबडिविजनल अदालत में लोग हजारों की संख्या में मौजूद थे| मजिस्ट्रेट चाहता था थी इस मुकदमें की कार्यवाही रोक दी जाये, परतु गाँधी जी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और उन्होंने सरकारी उलंघन का अपना अपराध कबूल कर लिया।
गाँधीजो ने अपने चंपारण आने का उद्देश्य बताया| उन्होंने ये भी बताया की वो यहाँ की लोगो की समस्या दूर की जाये इसलिए उन्होंने सरकारी आदेश का उन्लंघन किया और इस अपराध की लिए वो किसी भी सजा की लिए तैयार है| उसी समय बिहार के लैफ्टिनेट गर्वनर ने मजिस्ट्रेट को मुकदमा वापस लेने को आदेश दिया।
और इस तरह बिना किस खून खराबे और हथियार उठाये उन्होंने अपने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का परिचय दिया और उनके इन्ही बातों का ऐसा असर हुआ कि, वहाँ की सरकार की तरफ से उन्हे पूरे सहयोग का आश्वासन प्राप्त हुआ। इस आंदोलन की लिए उन्हें बाबू राजेन्द्र प्रसाद, आर्चाय जे पी कृपलानी, बाबु बृजकिशोर प्रसाद तथा मौलाना मजरुल्लहक जैसे विशिष्ट लोगों का सहयोग भी प्राप्त हुआ जिससे वो चंपारण के किसानो की समस्या को सुलझाने में सफल हुए।
गाँधी जी, उनके सहयोगियों और वहाँ के किसानों की सहभागिता को देखते हुए वहां के तत्कालीन बिहार सरकार ने उच्च स्तरिय समीति का गठन किया एक सदस्य गाँधी जी को भी बनाया गया और इस कमेटी के रिपोर्ट को सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया गया और तीन कठ्ठा प्रथा समाप्त कर दी गई। यही नहीं इसके अलावे वहां के किसानों के हित में अनेक सुविधायें प्रदान की गईं। इस तरह निहलों के खिलाफये आन्दोलन सफलता पूवर्क समाप्त हुआ।
जिसकी सफलता से वहां के किसानों में आत्मविश्वास बड़ा और अंग्रेजो के अत्याचार से लङने के लिये उनमें एक नई शक्ति का संचार हुआ।यह सत्याग्रह भारत का प्रथम अहिंसात्मक सफल आन्दोलन था जिसका प्रभाव आगे के आंदोलनों पे पड़ा और इस तरह गाँधी ने पाने भारत की आजादी के आंदोलन की शुरुवात की।
जय हिन्द जय भारत
चम्पारण एक ऐतिहासिक जगह है जो की आज बिहार राज्य में पड़ता है जो की आज पूरबी और पच्मि चम्पारण जिले में विभाजित है| राजा जनक में ज़माने में यह मिथिला में पड़ता था|
जब महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रिका से लौटकर भारत आये थे तब उन्होंने अपना पहला आंदोलन यही से शुरुवात किया था| यह आंदोलन गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917-18 शुरुआत हुआ था| चूकि यह चम्पारण जिले से शुरु हुआ इसलिए इसे चम्पारण आंदोलन के नाम से जाना गया और इस आंदोलन में उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई।
जब महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रिका से लौटकर भारत आये तब यही के एक किसान राजकुमार शुक्ल उन्से मिलने पहुंचे और उन्हें यहाँ की सच्चाई बताई की कैसे यहाँ चंपारण में अंग्रेजों ने नील बनाने के अनेकों कारखाने खोल रखे है। जिन्हे निहले कहा जाता था। जो की यहाँ की अधिकांश ज़मीनों को हथियाकर उस पर अपनी कोठियां बनवा रखी है और ये अंग्रेज यहाँ के किसानो को नील की खेती के लिए मजबूर करते है। उनका कहना है कि एक बीघे ज़मीन पे तीन कठ्ठे नील की खेती जरूर करें और इस प्रकार जो भी पैदावार होती थी वो उन्हें कौड़ियों के दाम खरीदते है। जिन्हे तीन कठिया प्रथा कहा जाता था। जिसके कारण यहाँ के किसानों का भंयकर शोषण हो रहा है ।
जिसके कारण किसानो में अंग्रेजों के खिलाफ भयंकड असंतोष फैल चुका है। ये अंग्रेज यहाँ की जनता का और व् बहुत तरह से शोषण किया करते है, और जिससे तंग आकर वो उनके पास आये क्युकी वो उनके दक्षिण अफ्रिका आंदोलन के बारे में जानते है| राजकुमार शुक्ल के अथक प्रयअसो से ही राष्ट्रीय कांग्रेस के 1916 के अधिवेशन में एक प्रस्ताव प्रस्ताव पारित कर चंपारण के किसानो के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई। 10 अप्रैल 1917 यानि आज के दिन गाँधीजी राजकुमार शुक्ल के साथ पटना पहुँचे और उसी रात् वही se वो मुजफ्फरपुर के लिए निकल गये। वो अपने पटना प्रवास के दौरान वहाँ के प्रख्यात वकील राजेन्द्र प्रसाद से मिलना चाहते थे परन्तु वो उस समय वहा मौजूद नही थे। तब गाँधी जी मौलाना मजरुल्लहक जो की उनके मित्र भी थे उनसे मिलकर नील की खेती से सम्बंधित समस्या की जानकारी ली और इससे निजात हेतु विचार विमर्श किया ।
फिर गाँधी जी 15 अप्रेल को मोतिहारी पहुँचे, वहाँ से जब गाँधीजी 16 अप्रैल की सुबह चंपारण के लिये निकल रहे थे, तभी मोतीहारी के एस डी ओ के सामने उपस्थित होने का सरकारी फरमान उन्हे मिला। जिसमे ये भी लिखा हुआ था कि वे इस क्षेत्र को छोङकर तुरंत वापस चले जायें। गाँधी जी ने इसे नहीं मन और अपनी यात्रा को जारी रखा। आदेश नहीं मानने की वजह से उनपर मुकदमा चलाया गया। चंपारण पहुँच कर गाँधी जी ने वहाँ के डीएम को लिखकर सूचना दी की,
" वे तब तक चंपारण नही छोङेगें, जबतक नील की खेती से जुङी समस्याओं की जाँच वो पूरी नही कर लेते।"
गाँधी जी से मिलने की लिए पहले से ही सबडिविजनल अदालत में लोग हजारों की संख्या में मौजूद थे| मजिस्ट्रेट चाहता था थी इस मुकदमें की कार्यवाही रोक दी जाये, परतु गाँधी जी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और उन्होंने सरकारी उलंघन का अपना अपराध कबूल कर लिया।
गाँधीजो ने अपने चंपारण आने का उद्देश्य बताया| उन्होंने ये भी बताया की वो यहाँ की लोगो की समस्या दूर की जाये इसलिए उन्होंने सरकारी आदेश का उन्लंघन किया और इस अपराध की लिए वो किसी भी सजा की लिए तैयार है| उसी समय बिहार के लैफ्टिनेट गर्वनर ने मजिस्ट्रेट को मुकदमा वापस लेने को आदेश दिया।
और इस तरह बिना किस खून खराबे और हथियार उठाये उन्होंने अपने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का परिचय दिया और उनके इन्ही बातों का ऐसा असर हुआ कि, वहाँ की सरकार की तरफ से उन्हे पूरे सहयोग का आश्वासन प्राप्त हुआ। इस आंदोलन की लिए उन्हें बाबू राजेन्द्र प्रसाद, आर्चाय जे पी कृपलानी, बाबु बृजकिशोर प्रसाद तथा मौलाना मजरुल्लहक जैसे विशिष्ट लोगों का सहयोग भी प्राप्त हुआ जिससे वो चंपारण के किसानो की समस्या को सुलझाने में सफल हुए।
गाँधी जी, उनके सहयोगियों और वहाँ के किसानों की सहभागिता को देखते हुए वहां के तत्कालीन बिहार सरकार ने उच्च स्तरिय समीति का गठन किया एक सदस्य गाँधी जी को भी बनाया गया और इस कमेटी के रिपोर्ट को सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया गया और तीन कठ्ठा प्रथा समाप्त कर दी गई। यही नहीं इसके अलावे वहां के किसानों के हित में अनेक सुविधायें प्रदान की गईं। इस तरह निहलों के खिलाफये आन्दोलन सफलता पूवर्क समाप्त हुआ।
जिसकी सफलता से वहां के किसानों में आत्मविश्वास बड़ा और अंग्रेजो के अत्याचार से लङने के लिये उनमें एक नई शक्ति का संचार हुआ।यह सत्याग्रह भारत का प्रथम अहिंसात्मक सफल आन्दोलन था जिसका प्रभाव आगे के आंदोलनों पे पड़ा और इस तरह गाँधी ने पाने भारत की आजादी के आंदोलन की शुरुवात की।
जय हिन्द जय भारत